Nakaab (नकाब) हिंदी शायरी



नकाब 

 उठ जाएगा भरोसा तेरा भी हर एक मूरत से,

जिस दिन वो हटाएगा नकाब अपनी सूरत से।


मुफ्त में नही कोई भी सलाह देता यहाँ यारों,

बातें भी आजकल करता हर कोई जरूरत से।


इश्क़ और पागलपन में ये बात एक सी है

वास्ता नहीं होता है दोनों का हक़ीक़त से।


सब सम्पूर्ण है, यारों खुद में ही महाज्ञानी है,

सन्तुष्ट नही यहाँ कोई किसी की भी नसीहत से।


जमाना क्या करेगा रश तरक्की पर किसी की,

खुश नहीं यहाँ कोई अपनों की ही बरकत से।


उसे ना फ़र्क पड़ा ना ही अफसोस हुआ जरा भी,

सर झुका दिया उसने सबका अपनी हरकत से।

✍️✍️By Rahul Dager

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