सारी ज़िंदगी जी लोगों को दिखाने को
गर पड़ी थी तेरे आगे सारी उम्र कमाने को।
फिर क्यों तोडे तूने रिश्ते दौलत पाने को।।
खुद को ही दफनाकर नाम कमाया तूने,
सारी जिंदगी जी तूने लोगों को दिखाने को।।
एक ऊँगली भी ना उठी उसकी बेबफाई पर,
सारा जमाना आ गया मेरा इश्क़ आज़माने को।।
अपने गिरेबां के दाग देखता नही कोई,
हर कोई खड़ा है दूसरों के कालिक लगाने को।।
खुली किताब बनाकर रखा खुद को सारी उम्र मैंने,
अब कुछ नही मेरे पास इस किताब में छुपाने को।।
वो मुँह फेर कर अपनों को ही कर गए पराया,
मैंने अपने दिल से लगाया हर उस बेगाने को।।
हमनें अपनी मुस्कान बाँट दी ज़माने में,
वो आँसू दे गया मुझे सारी उम्र रुलाने को।।
जिस्म के पिंजरे में मैनें कैद रखा हर ख्वाब मेरा,
अब तैयार है जान-ए-राहुल ये पिंजरा छोड़ जाने को।।