Kasam (कसम) hindi shayari


कसम

 दर्द बेहद है दिल में हम दिखलाये भी कैसे।

वो सब जानकर अनजान हैं उसे बतलाये भी कैसे।।


हसरत है हमें एक बार फिर उसके दीदार की।

कमबख्त ने डाल रखी कसम हम जाये भी कैसे।।


जिसे बचपन से चाहा वो आज बैठा है सामने।

जज्बात दिल के उनसे अब छुपाये भी कैसे।।


अभी तक उनसे इजहार-ए-इश्क़ कर ना पाए हम।

परेशा है दिल की बात उन तक पहुँचाये भी कैसे।।


देख करीब उनको धड़कन बढ़ गई दिल की।

दिल दीवाना है उसको हम समझाये भी कैसे।।


वो किसी और की बनकर अकेला कर गई हमको।

जिंदगी बोझ-सी है अब इसे बिताये भी कैसे।।


मेरे मन को हमेशा से भाया था इक तू ही।

इस पागल मन को अब हम बहलाये भी कैसे।।

✍️✍️Rahul Dager

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